ग़ज़ल
तेरे वादे पे जिया
करते हैं.
हम भी क्या रिस्क
लिया करते हैं.
हमको रखते हैं अपनी
वेंटिग में,
सबको कनफर्म किया
करते हैं.
रोज़ खाते हैं न
पीने की कसम,
और फिर रोज़ पिया
करते हैं.
एक हम हैं कि सुधरते
ही नहीं,
मशवरे लोग दिया करते
हैं.
चाक करते हैं अपने
दामन को,
और फिर खुद ही सिया
करते हैं.
डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात.
badhiya ...khoob hansa diya ...
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