ग़ज़ल
उखड़ा उखड़ा रहता
है.
ये दिल क्या क्या
सहता है.
तू करता फरियाद
जिसे,
वो हाक़िम तो बहरा
है.
भरते भरते उम्र हुई,
ज़ख़्म ये कितना
गहरा है.
जीवन भर के कैदी
क्यों,
रोज़ाना तू रोता है.
सूरत को देखे हैं
लोग,
दिल को किसने देखा
है ?
झूठ के सर पे ताज़
रखे,
सच का सर तो नंगा
है.
सीधी सच्ची बात कहे,
लोग ये कहते पगला
है.
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