गुरुवार, 16 जनवरी 2014

बेवफ़ाई के किस्से सुनाऊँ किसे ?

ग़ज़ल
बेवफ़ाई के किस्से सुनाऊँ किसे  ?
बात दिल की है अपनी बताऊँ किसे  ?

कौन दुनियाँ में अपना तलबगार है,
फोन किस को करूँ मैं बुलाऊँ किसे ?

रूठने और मनाने के मौसम गये,
किससे रूठूँ मैं अब, मैं मनाऊँ किसे ?

ज़ख़्म दो चार हो तो गिनायें भी हम,
सैकड़ो ज़ख़्म अपने गिनाऊँ  किसे  ?
  
छोड़ देते हैं सब साथ मझधार में,
अब अखीरी में मैं आजमाऊँ किसे ?

गुन गुनाने को जब पास कुछ भी नहीं,
वेवज़ह फिर यूँ ही गुनगुनाऊँ किसे ?

शाख पर मेरी फल आ गये इन दिनों,
ख़दु ही झुकजाऊँ में अब झुकाऊँ किसे ?

डॉ.सुभाष भदौरिया गुजरात. ता.16-11-20141







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