ग़ज़ल
बेवफ़ाई के किस्से
सुनाऊँ किसे ?
बात दिल की है अपनी
बताऊँ किसे ?
कौन दुनियाँ में
अपना तलबगार है,
फोन किस को करूँ मैं
बुलाऊँ किसे ?
रूठने और मनाने के
मौसम गये,
किससे रूठूँ मैं अब,
मैं मनाऊँ किसे ?
ज़ख़्म दो चार हो तो
गिनायें भी हम,
सैकड़ो ज़ख़्म अपने
गिनाऊँ किसे ?
छोड़ देते हैं सब
साथ मझधार में,
अब अखीरी में मैं
आजमाऊँ किसे ?
गुन गुनाने को जब
पास कुछ भी नहीं,
वेवज़ह फिर यूँ ही
गुनगुनाऊँ किसे ?
शाख पर मेरी फल आ
गये इन दिनों,
ख़दु ही झुकजाऊँ में
अब झुकाऊँ किसे ?
डॉ.सुभाष भदौरिया
गुजरात. ता.16-11-20141
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