ग़ज़ल
अच्छे दिनों ने अपना
क्या हाल कर दिया है.
धोती को फाड़ उसने
रूमाल कर दिया है.
जीना भी बहुत
मुश्किल, मरना भी बहुत मुश्किल,
कंगलों को और उसने
कंगाल कर दिया है.
आलू व प्याज को भी मुहंताज़ हो गये हम,
सेठों को और उसने
खुशहाल कर दिया है.
गालों में रंगते हैं
उसके गुलाब जैसीं,
गालों को पर हमारे
पाताल कर दिया है.
इक जाल से जो निकले दूजे
में फंस गये फिर
बाज़ीगरी ने उसके
कम्माल कर दिया है.
संसद से हो सड़क तक
रफ़्तार अब बुलट सी,
लाचार झोपड़ों को
बेहाल कर दिया है.
डॉ.सुभाष भदौरिया गुजरात ता.17-7-2014
यह तो मानते हैं इससे पहले अच्छे दिन नहीं थे , और उस समय अगर यही हाल थे , तो कैसा गिला कैसा शिकवा ?अच्छे दिन की आखिर परिभाषा भी क्या है?
जवाब देंहटाएंहम तो मूर्ख हैं जी परिभाषा ज्ञानीराज देंगें.हम तो आम आदमी के बेबसी को शिद्दत से महसूस कर बयान ही कर सकते हैं. ब्लाग पर आपका स्वागत है श्रीमान.
जवाब देंहटाएंकल 26/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
व्क़ाह वाह हर अशार कमाल कर गया है आज की हालात को इत्ने सुन्दर तरीके से कहना वाह 1सौ मे से सौ नम्बर
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया
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