पटरियों पे खिले हैं कमल क्या कहें. |
संगेदिल आप हैं हाले दिल क्या कहें.
जब ग़ज़ल ही नहीं
तो ग़ज़ल क्या कहें.
सुनते आये थे कीचड़ में खिलते कमल,
पटरियों पे खिले हैं कमल क्या कहें.
आसमां पे बिठाये है वो ख़ास को,
आम सड़कों से भी बेदखल क्या कहें.
जो भी अमृत था सब देवता पी गये.
अपने हिस्से में छोड़ा गरल क्या कहें.
पहले थी ही बहुत ये कठिन ज़िंदगी,
और भी उसने कर दी सरल क्या कहें.
खोटे सिक्कों का इतना चलन हो गया,
छोड़िए अब असल की असल क्या कहें.
डॉ.सुभाष भदौरिया गुजरात ता.24-05-2019
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