बुधवार, 15 जुलाई 2020

मामला इस तरह न सुलझेगा.

ग़ज़ल

मामला इस तरह न सुलझेगा.

मुझको उलझा के वो भी उलझेगा.

खूब रच ले तिलिस्म तू झूटा,

एक दिन ये तिलिस्म टूटेगा.

सबने गिरवीं रखीं ज़ुबा अपनी,

हम ना बोले तो, कौन बोलेगा ?

साथ वो ही चलेगा अब मेरे,

घर तो क्या ख़ुद को भी जो फूकेगा.

शौक़ से काट ले तू सर मेरा,

जंग में धड़ भी मेरा जूझेगा.

हाथी, घोड़े, वज़ीर,सब रुख़सत,

शह बचाने की अब वो सोचेगा.

रफ़्ता रफ़्ता बढ़ेगी और कशिश,

और जितना वो ख़ुद को रोकेगा.

नाज़ हमने उठाये हैं तेरे,

हम  ना होंगे तो कौन पूछेगा ?

 

डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात ता.15-07-2020

 

 


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