ग़ज़ल
इन दिनों नींद गायब बता क्या करें.
रतजगों की कहो अब दवा क्या करें.
तेरी यादों का अब ये न उतरे नशा,
और अब दूसरा हम नशा क्या करें.
हम को ख़ुद का पता ही नहीं आजकल,
जानकर उसका अब हम पता क्या करें.
बद-दुआओं का है कुछ असर इस तरह,
काम आती नहीं अब दुआ क्या करें.
एक ख़ता की मिली है सज़ा उम्र भर,
दूसरी और अब हम ख़ता क्या करें.
मेरा क़ातिल वही, मेरा मुंसिफ़ वही,
हमको मंजूर हर फैसला क्या करें.
जब वफ़ा का जहां में चलन ही नहीं,
हो गये हम भी अब बेवफ़ा क्या करें.
ख़ुद न दे, और औरों को देने न दे,
पूजकर ऐसा अब हम ख़ुदा क्या करें.
आँधियां हैं बुझाने को मचली हुईं,
अब बुझा, अब बुझा, ये दिया क्या करें.
डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात ता.16-07-2020
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