मेरी
जानेमन, मेरी जानेजां, मेरी चश्मेनम, मेरी दिलरूबा.
तेरे
इश्क़ में, तेरी चाह में, मेरा दिल तो हो गया बावरा.
मेरे
सारे पात हैं झर गये, मैं तो ठूंठ में हूँ बदल गया.
तू
समन्दरों पे बरस गई, तेरी राह मैं रहा ताकता.
तुझे
ये गुमां कि मैं बहुत खुश, तुझे ये गिला कि भुला दिया,
तेरी
जुस्तजू मुझे आज भी, तुझे क्या ख़बर तुझे क्या पता.
मेरे
हाथ भी हैं क़लम हुए, मेरी काट ली है ज़ुबा मगर,
मेरा
सर अभी भी तना हुआ, वो तो कह रहा है झुका झुका.
अभी
रूप का बड़ा शोर है, अभी झूठ का बड़ा ज़ोर
है.
अभी
आइना है बिका हुआ, अभी सच बहुत है डरा हुआ.
अभी
पास हूँ तो कदर नहीं, कभी खो गया मैं जो भीड़ में,
मुझे
खोजता रह जायगा, कहीं हो गया मैं जो लापता.
डॉ.
सुभाष भदौरिया गुजरात.
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