अच्छे दिनों ने कैसे ये दिन दिखाये हैं अब.
शमशान में सभी जन लाइन लगाये हैं अब.
ख़ुदने लगी हैं थोक में कबरें भी अब जनाब,
सांसों के टूटने का किस्सा सुनाये हैं अब .
हे गंगा-पुत्र गंगा की सुध जा के लीजिएगा.
बे-कफ़्न ही शवों को क्योंकर बहाये हैं अब.
शहरों से मौत बटते हुए गाँव आ गई लो ,
आयेगा किसका नंबर सब सर झुकाये हैं अब.
अब दोस्त क्या कि दुश्मन खाये हैं तरस हम पर,
हालात ऐसे बोलो किसने बनाये हैं अब .
डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात ता. 14-05-2021
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