गुरुवार, 20 जनवरी 2022

सूखी नदी में नाव चलाकर के क्या करें.

 

ग़ज़ल

सूखी नदी में नाव चलाकर के क्या करें.

उस बेवफ़ा से दिल को लगाकर के क्या करें.


तालाब ये अश्कों के भी अब सूखने लगे,

हम रोज़ रोज़ अश्क बहाकर के क्या करें.


इल्ज़ाम सारे हमने तो तस्लीम कर लिये,

हम ख़ुद को पाक़ साफ़ बताकर के क्या करें.


आदत सी पड़ गयी है अँधेरों की जब हमें,

फिर दूसरी शम्अ जलाकर के क्या करें.


खाये हो गहरी चोट कहां पूछते हैं सब,

हम नाम अब सभी का गिनाकर के क्या करें.


डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात. ता.20-01-2022

 

 

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