ग़ज़ल
तुझ पे जीते रहे तुझ पे मरते रहे.
हम गज़ल में तुझे याद करते रहे.
ये अलग बात तूने न डाली नज़र,
तेरी ख़ातिर ही तो हम सँवरते रहे.
खिड़कियों से भी तूने न झाँका कभी,
तेरी गलियों से भी हम गुज़रते रहे.
ख़त लिखे रोज़ तुझको मगर क्या कहें,
तेरे हाथों में देने से डरते रहे.
हमने सोचा इनायत करेंगे कभी,
और वो थे कि हरदम मुकरते रहे.
आँधियां ग़म की चलती रहीं उम्रभर.
सूखे पत्तों से हम तो बिखरते रहे.
डॉ. सुभाष भदौरिया अहमदाबाद गुजरात ता.17/11/2024
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