शुक्रवार, 29 नवंबर 2024

रात भर चैन से वो तो सोते रहे.

 
         ग़ज़ल

     रात भर चैन से वो तो सोते रहे.

और हम थे कि अँखियां भिगोते रहे.


उनकी राहों में मैं जितना बिछता गया ,

मूँग उतनी वो छाती पे बोते रहे.


खूँन ज़ख़्मों से रिसता रहा उम्र भर,

बेवफ़ा लोग नश्तर चुभोते रहे.


चाँदनी अपनी किस्मत में थी ही कहाँ ?

जो भी तारे मिले वो भी खोते रहे.


ये अलग बात डूबे नहीं आज तक,

यूँ समन्दर तो हमको डुबोते रहे.


डॉ. सुभाष भदौरिया, अहमदाबाद गुजरात ता. 29/11/2024





                                                    


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