ग़ज़ल
तन्हा तो बहुत पहले भी थे पर इस बार की तन्हाई तौबा.
डूबेगें यक़ीनन लगता है तेरे हुस्न की गहराई तौबा.
पूछो न क़यामत होती है उस वक्त का आलम क्या कहिये.
हाथों को उठाकर लेते हैं जिस वक्त वो अँगड़ाई तौबा.
मैं जाऊं जहां उससे पहले पहुँचे हैं मेरे अब अफ़्साने.
उँगली को पकड़ के ले जाये तेरे इश्क़ की रुस्वाई तौबा.
लूं लाख भुलाने की कस्में,कोशिश में करूं चाहे जितनी,
पीछा ही नहीं छोडें मेरा, तेरी याद की परछाई तौबा.
मैं याद करूं जिसको हरदम वो भी तो सुनें दिल की बतियां.
अँखियां भर आयीं क्यों अपनी, भूला है वो हरजाई तौबा.
मैंने भी सुना है लोगों से, हाथों में रची मेंहदी तेरे,
अब जान ही लेके जायेगी गलियों की ये शहनाई तौबा.
डॉ. सुभाष भदौरिया अहमदाबाद , गुजरात ता.03/12/2024
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