गुरुवार, 5 दिसंबर 2024

रात दिन अब तेरे मैं ख़यालों में हूँ.

 ग़ज़ल

रात दिन अब तेरे मैं ख़यालों में हूँ.

मैं जवाबों में हूँ मैं सवालों में हूँ.

 

मुझको महसूस कर अय मेरे हमनशीं,

ऊंगलियाँ बनके फिरता मैं बालों में हूँ.

 

ज़िक्र छेड़ें  मेरा, जब भी सखियां तेरी,

सुर्ख़ियाँ बन के मैं तेरे गालों में हूँ.

 

चांद को चूमने की करे आर्ज़ू,

मैं समन्दर की ऊँची उछालों में हूँ.

 

मुझ को पी कर के देखे तो मालूम हो,

 लुत्फ़ के आख़िरी मैं प्यालों में हूँ.

 

जिसको मंज़िल मिले ना कभी उम्र भर,

पांव के ऐसे रिसते मैं छालों में हूँ.


डॉ. सुभाष भदौरिया अहमदाबाद ता.04/12/2024

 


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