गुरुवार, 12 दिसंबर 2024

दर्द सीने में फिर से उठा है.

 

ग़ज़ल

ये न पूछो कि अब क्या हुआ है.

दर्द सीने में फिर से उठा है.


कोई कांटा हो तो हम निकालें,

फूल अपने कलेजे चुभा है.


हर जगह ये तुझे ढूँढ़ता है,

मेरा दिल भी हुआ बावरा है.


मेरी सांसों में है तू समाया,

मैंने माना बहुत फ़ासला है.


जिसकी मर्जी हो वो उसको पूजे,

मेरा महबूब ही देवता है.


डॉ. सुभाष भदौरिया अहमदाबाद ता.12/12/2024

 

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