सोमवार, 16 दिसंबर 2024

यादों की रजाई पे तेरी, मुश्किल से ग़ुज़ारा करते हैं.

                                                                           ग़ज़ल

मिल जायें अगर जो राहों में, झट से वो किनारा करते हैं.

तस्वीर हमारी जो चुपके चुपके से निहारा करते हैं.

 

ठंडी ठंडी रातों की चुभन, उसपे ये ग़ज़ब की तन्हाई,

यादों की रजाई पे तेरी, मुश्किल से ग़ुज़ारा करते हैं.

 

ये बात कहाँ वो समझेंगे, ये बात कहाँ वो मानेगे.

हम रात को उठ उठ कर अक्सर उनको ही पुकारा करते हैं.

 

दिल आपका रखने की ख़ातिर सह लेते हैं हर एक सितम,

जीती हुई बाज़ी को हम तो हँस हँस के हारा करते हैं.

 

अल्फ़ाज़ हमारे गर तुम तक पहुँचें तो हमारी सुध लेना.

अब दोस्त तो क्या दुश्मन भी मेरी हालत पे बिचारा करते हैं.

 

डॉ. सुभाष भदौरिया अहमदाबाद ता.16/12/2024

 

 

 

 

 

 

 

 

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