ग़ज़ल
बेवफ़ा जो
हमें कह रहे हैं.
दूध के जैसे
वे तो धुले हैं.
ऐब सारे हों
हम में ही जैसे,
पारसा ऐक वे
ही बचे हैं.
अपनी ख़ुश्बू
पे इतरा न इतना,
इत्र हम भी
बहुत बेचते हैं.
आसमां में परिन्दे उड़ें जो,
वो ज़मी पर
भी फिर लौटते हैं.
जब सरोकार मुझसे
नहीं फिर,
मेरे बारे
में क्यों सोचते हैं.
उसकी ना में
ही है हां भी शामिल,
उसके चेहरे
भी हमने पढ़े हैं.
जब भी मर्जी हो तेरी तू आजा,
सूने सूने
ये दिल के किले हैं.
ऐक तू है
तुझे हमसे नफ़रत,
ऐक हम हैं
तुझे चाहते हैं.
डॉ. सुभाष
भदौरिया अहमदाबाद ता.24/12/2024
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें