ग़ज़ल
झील जैसी ये
गहरी हैं आँखें तेरी.
बैगनी, बैगनी,
कत्थई, कत्थई.
टकटकी बाँधकर यूं न देखो हमें,
डूब जायेंगे
हम बात मानो मेरी.
होश अपने उड़े फ़ाख़्ता की तरह,
आसमां से
लगा जैसे बिजली गिरी.
बातों बातों
में ही ले गयी दिल मेरा,
वो जो सूरत
थी इक सांवरी, सांवरी.
अब समन्दर
भी मिलने को बेताब है,
और पता
पूछती फिर रही है नदी.
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