ग़ज़ल
या तो आजाओ
या फिर हमको बुलाकर देखो.
आशिक़ी क्या
है कभी दिल को लगाकर देखो.
तुम तो ज़ालिम
हो तुम्हें दर्द का अहसास कहाँ,
रोज़ नश्तर मेरे
सीने में चुभाकर देखो.
अपनी नज़रों
में ही गिर जाओगे मानो मेरी,
आँख से आँख
मेरी तुम जो मिलाकर देखो.
ज़हन में और
भी उतरेगी ये ख़ुश्बू मेरी,
तुम मेरी
चाहो तो तस्वीर जलाकर देखो.
सामने सबके
तो करते हो अदेखी मेरी,
और फिर चुपके
से नज़रों को चुराकर देखो.
सारी रंगीनियां चेहरे कि ये उड़ जायेंगी.
तुम मेरी
जान मुझे चाहो मिटाकर देखो.
हमने तो रख
दिया कदमों में तेरे दिल अपना,
अब इसे मार
दो ठोकर या उठाकर देखो.
डॉ. सुभाष
भदौरिया, अहमदाबाद, गुजरात ता.07/01/2025
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें