ग़ज़ल
तेरे बारे
में अब सोचता भी नहीं.
और ये भी है
सच भूलता भी नहीं.
तेरी तस्वीर
तो देखता हूँ मगर,
पहले की तरह
अब चूमता भी नहीं.
काट लेता
हूँ तनहाइयों का नरक,
बेवजह अब
कहीँ घूमता भी नहीं.
हाले दिल तो
बहुत हम सुनाते रहे,
ये अलग बात
उसने सुना ही नहीं.
साथ छोड़ा
है जिस दिन से तूने मेरा,
मैं जिया भी
नहीं, मैं मरा भी नहीं.
गुम हुआ
आजकल है वो है जाने कहाँ ?
बेवफ़ा का
कहीँ भी पता ही नहीं.
डॉ. सुभाष
भदौरिया अहमदाबाद, गुजरात ता. 15/01/2025
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