रविवार, 17 नवंबर 2024

हम गज़ल में तुझे याद करते रहे.

ग़ज़ल
तुझ पे जीते रहे तुझ पे मरते रहे.
हम गज़ल में तुझे याद करते रहे.

ये अलग बात तूने न डाली नज़र,
तेरी ख़ातिर ही तो हम सँवरते रहे.

खिड़कियों से भी तूने न झाँका कभी,
तेरी गलियों से भी हम गुज़रते रहे.

ख़त लिखे रोज़ तुझको मगर क्या कहें,
तेरे हाथों में देने से डरते रहे.

हमने सोचा इनायत करेंगे कभी,
और वो थे कि हरदम मुकरते रहे.

आँधियां ग़म की चलती रहीं उम्रभर.
सूखे पत्तों से हम तो बिखरते रहे.

डॉ. सुभाष भदौरिया अहमदाबाद गुजरात ता.17/11/2024
 

शुक्रवार, 15 नवंबर 2024

ख़त में उसने मुझे बेवफ़ा लिख दिया

                                                                       
ग़ज़ल
सोचे समझे बिना मुझको क्या लिख दिया.
 ख़त में  उसने मुझे बेवफ़ा लिख दिया.

ना बहस , ना गवाह, ना सुबूत ही कोई,
मेरे मुंसिफ ने क्या फ़ैसला लिख दिया.

ढूँढ़ लो दूसरी अपने जैसी कोई,
कितना दिलचश्प ये मशवरा  लिख दिया.

उसकी गुस्ताख़ियों को लगाया गले.
ज़हर का नाम हमने दवा लिख दिया.

दिल के हाथों से हम कितने मज़्बूर थे.
दिल के दुशमन को ही दिलरूबा लिख दिया.

मुझको पढ़ते अगर तो कोई बात थी.
 बिन पढ़े ही मिरा तब्सिरा  लिख दिया.

डॉ. सुभाष भदौरिया. अहमदाबाद गुजरात ता. 15/11/2024



 


मंगलवार, 12 नवंबर 2024

जानेमन यूँ न दिल को दुखाया करो.


 ग़ज़ल

जानेमन यूँ न दिल को दुखाया करो.

ख़्वाब में ही सही आप आया करो.


पास बैठो ज़रा तुम घड़ी ,दो घड़ी,

ज़ल्दी ज़ल्दी ना इतनी मचाया करो.


जो भी कहना हमें सीधा सीधा कहो.

बीच में दूसरों को न लाया करो.


आँख दिख लाये हो तुम वज़ह बेवज़ह.

भूल कर तो कभी मुस्कराया करो.


रूठ लो,रूठलो  हक़ दिया ये तुम्हें.

जब मनायें तो फिर मान जाया करो.


इश्क़ हो जायेगा रफ़्ता रफ़्ता तुम्हें.

मेरी ग़ज़लों को भी गुनगुनाया करो.


डॉ. सुभाष भदौरिया अहमदाबाद गुजरात ता. 12/11/2024



बुधवार, 25 सितंबर 2024

दूर ले जाये हमको बहा के कहीं

 

ग़ज़ल

हमने चाहा जिसे वो खुशी ना मिली.

दुश्मनी तो मिली दोस्ती ना मिली..

 

यूँ अँधरे मिला बेतहाशा हमें.

पर लिपट कर कभी रोशनी ना मिली..

 

कोई आँसू बहाये हमारे लिए.

आँख  में वो किसी के नमी ना मिली.

 

बे वजह यूँ ही उड़ते रहे उम्र भर.

आसमां तो मिला पर जमीं ना मिली.

 

दूर ले जाये हमको बहा के कहीं,

तेज रफ़्तार की वो नदी ना मिली..

 

डॉ.सुभाष भदौरिया अहमदाबाद गुजरात. ता.25/09/2024

 

 

शुक्रवार, 13 सितंबर 2024

तेरा भी हाथ है शामिल मेरी तबाही में।


ग़ज़ल

पुराने ज़ख़्मों को मेरे झिंझोड़ता क्यों है।
तू अपने आपको औरों से जोड़ता क्यों है।।

हलाल कर मुझे अपने हसीन हाथों से।
मैं ज़िन्दा हूं तू मुझे ज़िन्दा छोड़ता क्यों है।।

दिखा के पीठ यूं मैदां से हो रहा रख़सत।
उसूल जंग के इस तरह तोड़ता क्यों है।।

तेरा भी हाथ है शामिल मेरी तबाही में।
मेरा ही हाथ तू हरदम मरोड़ता क्यों है।।

तुझे है वास्ता मेरे न मरने जीने से ।
मुझे तू नीबू सा हरदम निचोड़ता क्यों है।।

शरीफ बन के वो लूटे है सीधे सादों को।
वो अपना ठीकरा सर मेरे फोड़ता क्यों है।।

डॉ.सुभाष भदोरिया अहमदाबाद गुजरात।

रविवार, 12 फ़रवरी 2023

नींद आँखों से अपनी गायब है, बेंच वो मुल्क मुस्कराता है.

 


ग़ज़ल

वक्त के साथ बदल जाता है.

ताज़ जाता है ताज़ आता है.

 

अपने चहरे पे मुर्दगी छायी,

चहरा उसका तो जगमगाता है.

 

नींद आँखों से अपनी गायब है,

बेंच वो मुल्क मुस्कराता है.

 

देश भेड़ों में हो गया तब्दील,

रात दिन सब को वो चराता है.

 

उसकी छत से टपक रहा अमृत,

चाट कर सबको वो बताता है.

 

उसकी जादूगरी के क्या कहने,

आग पानी में वो लगाता है.

 

दाग़ पर दाग़ लग रहे फिर भी,

और दाग़ों को वो छुपाता है.

 

मौत से हमको मत डराना तुम,

मौत से खानदानी नाता है.


उपरोकत तस्वीर से ये ग़ज़ल वाबिस्ता है.

 

 

 

 

 

 

 

 

गुरुवार, 10 नवंबर 2022

 

ग़ज़ल

पुल पे जाने से अब लोग डरने लगे.

मोरबी की व्यथा याद करने लगे.


ट्रेन भैसों से ज़ख्मी हुईं आजकल,

रंग वफ़ा के यहां भी उतरने लगे.


उनकी सौगात की आँधियां यूं चली,

सूखे पत्तों से हम तो बिखरने लगे.


जिनकी परवाज़ थी आसमानों तलक,

बैठ कर पर वे उनके कतरने लगे.


 इतना मत प्यार कर हम को ओ बेवफ़ा,

हम मुहब्बत में अब तेरी मरने लगे.

 

डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात. ता. 10/11/20222