सोमवार, 28 अप्रैल 2025

अणुं बोम्ब तुम भी डालो, अणुं बोम्ब हम भी डालें.

ग़ज़ल

अब आओ दोनों मिलकर अरमान ये निकालें.
अणुं बोम्ब तुम भी डालो, अणुं बोम्ब हम भी डालें.

अब रोज़ रोज़ की ये, खटपट ही ख़तम कर दें,
तुम हम को मार डालो, हम तुम को मार डालें.

कब किसने ज़हर घोला, कब किसने सांप पाले,
कभी पगड़ी तुम उछालो, कभी पगड़ी हम उछालें.

महफ़ूज़ आपके भी अब  घर कहां  बचें हैं ?
बारूद चाहे जितनी आँगन मेरे बिछालें.

नक्शे पे तुम कभी थे, नक्शे पे थे कभी हम,
भूगोल भी बदल दें इतिहास भी बनालें.

उपरोक्त गज़ल  मौज़ूदा हालात और  उन हुक्मरानों के नाम जो ज़बानी जंग से मैदानी जंग की ओर हर लम्हा आगे  बढ़ते जा रहे हैं.
डॉ. सुभाष भदौरिया ता.28/04/2025

गुरुवार, 24 अप्रैल 2025

भागोगे कहाँ बोलो जब लेंगे निशाने में.

 

                                                                                ग़ज़ल

इक उम्र हुई हमको घर अपना बनाने में.

कुछ देर तो होगी ही दुश्मन को गिराने में.


कश्मीर की वादी में मारे हैे निहत्थों को ,   

है हाथ तुम्हारा भी ये आग लगाने में.

 

 ख़ामोश अगर हैं तो बुज़दिल न समझ लेना,

भागोगे कहाँ बोलो जब लेंगे निशाने में.

 

चूहों को चढी मस्ती, उछले हैं बहुत सर पे,

ख़तरे हैं बहुत ख़तरे शेरों को जगाने में.

 

कट जाये अगर सर तो धड़ लड़ता है मैदा में,

पुरखों का लहू अब भी बाकी है ख़ज़ाने में.

 

साहिल पे खड़े रह कर देखे हो तमाशा तुम,

देरी नहीं लगती है तूफ़ान के आने में

 

डॉ.सुभाष भदौरिया ता.24/04/2025

 

डॉ. सुभाष भदौरिया.

 


बुधवार, 15 जनवरी 2025

तेरे बारे में अब सोचता भी नहीं.

 


ग़ज़ल

तेरे बारे में अब सोचता भी नहीं.

और ये भी है सच भूलता भी नहीं.


तेरी तस्वीर तो देखता हूँ मगर,

पहले की तरह अब चूमता भी नहीं.


काट लेता हूँ तनहाइयों का नरक,

बेवजह अब कहीँ घूमता भी नहीं.


हाले दिल तो बहुत हम सुनाते रहे,

ये अलग बात उसने सुना ही नहीं.


साथ छोड़ा है जिस दिन से तूने मेरा,

मैं जिया भी नहीं, मैं मरा भी नहीं.


गुम हुआ आजकल है वो है जाने कहाँ ?

बेवफ़ा का कहीँ भी पता ही नहीं.


डॉ. सुभाष भदौरिया अहमदाबाद, गुजरात ता. 15/01/2025

 

रविवार, 12 जनवरी 2025

झील जैसी ये गहरी हैं आँखें तेरी.

 

ग़ज़ल

झील जैसी ये गहरी हैं आँखें तेरी.

बैगनी, बैगनी, कत्थई, कत्थई.


टकटकी बाँधकर यूं न देखो हमें,

डूब जायेंगे हम बात मानो मेरी.


होश अपने उड़े फ़ाख़्ता की तरह,

आसमां से लगा जैसे बिजली गिरी.


बातों बातों में ही ले गयी दिल मेरा,

वो जो सूरत थी इक सांवरी, सांवरी.


अब समन्दर भी मिलने को बेताब है,

और पता पूछती फिर रही है नदी.

 

 डॉ.सुभाष भदौरिया अहमदाबाद. ता. 12/01/2025

 

 

मंगलवार, 7 जनवरी 2025

या तो आजाओ या फिर हमको बुलाकर देखो.


ग़ज़ल

या तो आजाओ या फिर हमको बुलाकर देखो.

आशिक़ी क्या है कभी दिल को लगाकर देखो.


तुम तो ज़ालिम हो तुम्हें दर्द का अहसास कहाँ,

रोज़  नश्तर  मेरे  सीने में  चुभाकर  देखो.


अपनी नज़रों में ही गिर जाओगे मानो मेरी,

आँख से आँख मेरी तुम जो मिलाकर देखो.


ज़हन में और भी उतरेगी ये ख़ुश्बू मेरी,

तुम मेरी चाहो तो तस्वीर जलाकर देखो.


सामने सबके तो करते हो अदेखी मेरी,

और फिर चुपके से नज़रों को चुराकर देखो.


सारी  रंगीनियां चेहरे कि ये उड़ जायेंगी.

तुम मेरी जान मुझे चाहो मिटाकर देखो.


हमने तो रख दिया कदमों में तेरे दिल अपना,

अब इसे मार दो ठोकर या उठाकर देखो.


डॉ. सुभाष भदौरिया, अहमदाबाद, गुजरात ता.07/01/2025

 

रविवार, 5 जनवरी 2025

रात भर मेरा बिस्तर महकता रहा,

                                                                      ग़ज़ल

दिल की चौखट पे ज्यों उनकी आमद हुई.

रूह में  हो  गयी  रोशनी,  रोशनी.

 

रात भर मेरा बिस्तर महकता रहा,

ख़्वाब में कल वो आया था ज़ुहराजबी.

 

मुद्दतों से थे जिसके तलबगार हम,

बात उसने कही , बात हमने सुनी.

 

पूछिये मत कि कैसा था हुस्ने सबीह.

चंपई. चंपई, मरमरी, मरमरी.

 

टूट कर वो गले से मिला इस तरह,

ज्यों समावे समन्दर में कोई नदी.

 

एक से एक बढ़कर नवाज़िश तेरी,

 हो गया दिल तेरा आफ्रीं आफ़्रीं.


डॉ. सुभाष भदौरिया अहमदाबाद, गुजरात ता.05/01/2025

 

 

रविवार, 29 दिसंबर 2024

कब तलक तेरा रस्ता तकें तू बता.

 ग़ज़ल

कब तलक तेरा रस्ता तकें तू बता.

आ भी जा, आ भी जा, आ भी जा, आ भी जा.


नब्ज़ थमने लगी, आँख मुदने लगी,

अब बुझा, अब बुझा, अब बुझा, अब बुझा.


आख़िरी वक़्त है आ के मिल ले गले,

मैं चला, मैं चला, मैं चला, मैं चला.


कितना मज्बूर मैं, कितना मग़रूर तू,

बेवफ़ा, बेवफ़ा, बेवफ़ा, बेवफ़ा .


नाम होटों पे जप, जप के ही वो तेरी,

मर गया, मर गया, मर गया, मर गया.


 लाश से अब लिपटकर के  रोता है वो,

ज़िन्दगी तुझको लाऊं कहाँ से बता.


देर आने में कर दी बहुत तूने अब,

अलविदा, अलविदा, अलविदा, अलविदा.


डॉ.सुभाष भदौरिया अहमदाबाद गुजरात ता.29/12/2024