डॉ.सुभाष भदौरिया गुजरात
रविवार, 17 नवंबर 2024
हम गज़ल में तुझे याद करते रहे.
शुक्रवार, 15 नवंबर 2024
ख़त में उसने मुझे बेवफ़ा लिख दिया
मंगलवार, 12 नवंबर 2024
जानेमन यूँ न दिल को दुखाया करो.
ग़ज़ल
जानेमन यूँ न दिल को दुखाया करो.
ख़्वाब में ही सही आप आया करो.
पास बैठो ज़रा तुम घड़ी ,दो घड़ी,
ज़ल्दी ज़ल्दी ना इतनी मचाया करो.
जो भी कहना हमें सीधा सीधा कहो.
बीच में दूसरों को न लाया करो.
आँख दिख लाये हो तुम वज़ह बेवज़ह.
भूल कर तो कभी मुस्कराया करो.
रूठ लो,रूठलो हक़ दिया ये तुम्हें.
जब मनायें तो फिर मान जाया करो.
इश्क़ हो जायेगा रफ़्ता रफ़्ता तुम्हें.
मेरी ग़ज़लों को भी गुनगुनाया करो.
डॉ. सुभाष भदौरिया अहमदाबाद गुजरात ता. 12/11/2024
बुधवार, 25 सितंबर 2024
दूर ले जाये हमको बहा के कहीं
ग़ज़ल
हमने चाहा जिसे वो खुशी
ना मिली.
दुश्मनी तो मिली दोस्ती
ना मिली..
यूँ अँधरे मिला बेतहाशा
हमें.
पर लिपट कर कभी रोशनी ना
मिली..
कोई आँसू बहाये हमारे
लिए.
आँख में वो किसी के नमी ना मिली.
बे वजह यूँ ही उड़ते रहे
उम्र भर.
आसमां तो मिला पर जमीं
ना मिली.
दूर ले जाये हमको बहा के कहीं,
तेज रफ़्तार की वो नदी
ना मिली..
डॉ.सुभाष भदौरिया
अहमदाबाद गुजरात. ता.25/09/2024
शुक्रवार, 13 सितंबर 2024
तेरा भी हाथ है शामिल मेरी तबाही में।
रविवार, 12 फ़रवरी 2023
नींद आँखों से अपनी गायब है, बेंच वो मुल्क मुस्कराता है.
वक्त के साथ बदल जाता है.
ताज़ जाता है ताज़ आता है.
अपने चहरे पे मुर्दगी
छायी,
चहरा उसका तो जगमगाता है.
नींद आँखों से अपनी गायब
है,
बेंच वो मुल्क मुस्कराता
है.
देश भेड़ों में हो गया
तब्दील,
रात दिन सब को वो चराता
है.
उसकी छत से टपक रहा अमृत,
चाट कर सबको वो बताता है.
उसकी जादूगरी के क्या
कहने,
आग पानी में वो लगाता है.
दाग़ पर दाग़ लग रहे फिर भी,
और दाग़ों को वो छुपाता
है.
मौत से हमको मत डराना
तुम,
मौत से खानदानी नाता है.
उपरोकत तस्वीर से ये ग़ज़ल वाबिस्ता है.
गुरुवार, 10 नवंबर 2022
पुल पे जाने से अब लोग डरने लगे.
मोरबी की व्यथा याद करने लगे.
ट्रेन भैसों से ज़ख्मी हुईं आजकल,
रंग वफ़ा के यहां भी उतरने लगे.
उनकी सौगात की आँधियां यूं चली,
सूखे पत्तों से हम तो बिखरने लगे.
जिनकी परवाज़ थी आसमानों तलक,
बैठ कर पर वे उनके कतरने लगे.
इतना मत प्यार कर
हम को ओ बेवफ़ा,
हम मुहब्बत में अब तेरी मरने लगे.
डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात. ता. 10/11/20222